चुनाव आयोग ने 253 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को निष्क्रिय घोषित किया

86 और अविद्यमान पंजीकृत अमान्यताप्राप्त राजनैतिक दल (आरयूपीपी) सूची से हटाए गए और प्रतीक आदेश (1968) के अंतर्गत लाभ वापस लिए गए

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उत्तर प्रदेश – पंजीकृत अमान्यताप्राप्त राजनैतिक दलों (आरयूपीपी) को अनुपालन हेतु बाध्य करने के लिए  भारत निर्वाचन आयोग ने 86 पंजीकृत अविद्यमान अमान्यताप्राप्त राजनैतिक दलों (आरयूपीपी) को सूची से हटा दिया है

इसके अतिरिक्त 253 पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों (आरयूपीपी) को ‘निष्क्रिय आरयूपीपी’ के रूप में घोषित किया।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29क के अंतर्गत सांविधिक अपेक्षाओं के अनुसार प्रत्येक राजनैतिक दल को अपने नाम, प्रधान कार्यालय, पदाधिकारियों, पते, पैन में किसी भी प्रकार के बदलाव की संसूचना आयोग को बिना किसी विलंब के देनी होती है। 86 पंजीकृत अमान्यताप्राप्त राजनैतिक दल ने अबतक यह नहीं किया था। इसके साथ ही भेजे गए कई पत्रों और नोटिसों का जवाब भी नहीं दिया था।

अनुपालन न करने वाले 253 पंजीकृत अमान्यताप्राप्त राजनैतिक दलों (आरयूपीपी) के विरुद्ध यह निर्णय सात राज्यों नामतः बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर लिया गया है। ये 253 आरयूपीपी निष्क्रिय घोषित कर दिए गए हैं क्योंकि उन्हें डिलीवर किए गए पत्र/नोटिस का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है और न तो राज्य के साधारण निर्वाचन में और न ही वर्ष 2014 एवं 2019 में संसद के एक भी निर्वाचन में निर्वाचन लड़ा है।

उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, चुनावी लोकतंत्र की शुद्धता के साथ-साथ व्यापक जनहित में तत्काल सुधारात्मक उपाय अपेक्षित हैं। इसलिए,

आयोग स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के अपने अधिदेश का निर्वहन करते हुए निर्देश देता है कि:

i)  86 अस्तित्वहीन आरयूपीपी, आरयूपीपी के रजिस्टर की सूची से हटा दिए जाएंगे और प्रतीक आदेश, 1968 के तहत लाभ पाने के हकदार नहीं होने के लिए स्वयं उत्तरदायी होंगे।

ii)  लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29क के तहत आयोग द्वारा अनुरक्षित आरयूपीपी के रजिस्टर में 253 आरयूपीपी को ‘निष्क्रिय आरयूपीपी’ के रूप में चिह्नित किया गया है।

iii)  ये 253 आरयूपीपी निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत कोई भी लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होंगे।

iv)  इससे पीड़ित कोई भी पक्ष, इस निर्देश के जारी होने के 30 दिनों के भीतर संबंधित मुख्य निर्वाचन अधिकारी/निर्वाचन आयोग से अस्तित्व के सभी साक्ष्य, अन्य कानूनी और नियामक अनुपालन सहित वर्षवार (चूक के सभी वर्षों के लिए) वार्षिक लेखा परीक्षित खाते, अंशदान रिपोर्ट, व्यय रिपोर्ट, वित्तीय लेनदेन (बैंक खाते सहित) के लिए अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं सहित पदाधिकारियों के अद्यतन विवरण के साथ संपर्क कर सकता है।

v)  इन 253 आरयूपीपीएस में से 66 आरयूपीपी, जिन्होंने विभिन्न निर्वाचनों में पैरा 10ख के तहत एक सामान्य प्रतीक की मांग की थी, लेकिन संबंधित साधारण निर्वाचनों के लिए कोई अभ्यर्थी नहीं खड़ा किया था, उन्हें (उपरोक्त बिंदु iii) के अलावा, यह स्पष्ट करना भी आवश्यक होगा कि “ऐसी दंडात्मक कार्रवाई के लिए उनको उत्तरदायी बनाने के लिए प्रतीक आदेश के पैरा 10 ख में यथा अधिदेशित आगे की कार्रवाई, जिसे आयोग उचित समझे” क्यों नहीं की जानी चाहिए।

 

 

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